भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तू परेम के रंग मैं रंग दे चोला आण रे बनवारी / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तू परेम के रंग मैं रंग दे चोला आण रे बनवारी
तू रंग जोगिआ रंग दे सेवक जाण रे बनवारी
राम नाम की चाल जमी हो सिव संकर की बूटी हो
भू गुरवो की डोर पड़ी हो किलफां जिसकी छटी हो
ग्वाल बाल गोपाल हो संग में ग्वालन की दधि लूटी हो
देख कै चोला मोरा जोगिआ आसा तिरसना टूटी हो
फिर पहर कै चोला करूं तुम्हारा ध्यान रे बनवारी
तू परेम के रंग...
सूत सूत मैं राम रम्या हो मेरै चोलै प्यारै मैं
गोकल मैं गउंआं चरती हों जमना बहे किनारै मैं
सत का सिलमा लगा दिआ जो चमके एक इसारै मैं
बेला फूल बण्या बिसणू का जो राम रह्या हमारे मैं
तार तार तै आवै हरी की तान रै बनवारी
तू परेम के रंग...
ठपपै मैं ठाकर जी बैठे देखूं पल्लै चारूं मैं
नारायण नरसी की क्यारी बणी होई इन फुलवारां मैं
नो लख तार्यां की चमकीली मिलै जो बजार्या मैं
चांद सूरज बी बणे होए हों मेरै चोलै प्यारै मैं
तू सत्त धरम नै पक्का करदे आण रे बनवारी
तू परेम के रंग...
राम नाम तू रंग में रंग दे गंगा जल लहराता हो
इस चोलै ने ओ पहरेगा जिसका हर तै नाता हो
यो चोला तो उसने भावै जिस नै मोहन भाता हो
मैं बेचैन रहूं तेरै बिन मनगुण तेरे गाता हो
मैं राम पार हो जाऊं कर गुणगान रे बनवारी
तू परेम के रंग...