तू मुझको यदि पद-गति देगा, तो अपने ही बोल सुनेगा!
चरण-बँधे स्वर, मधुप-कुलक-से,
गूँज उठेंगे परस-पुलक से;
सागर देगा ताल इधर तो चाँद उधर हिंडोल सुनेगा!
बंधन का मन जब चिर-गोपन
ध्वनित करेगा आत्म-निवेदन
धरती रुककर, अम्बर झुककर वह शिंजन अनमोल सुनेगा!
जड़ता को यदि मुखर करेगा
तो तेरा ही मन उघरेगा;
अपना ही गुण सगुण पदों में तू मुझसे बेबोल सुनेगा!