Last modified on 30 अप्रैल 2020, at 17:13

तू हर पल बाँटता फिरता ज़हर है / रूपम झा

तू हर पल बाँटता फ़िरता ज़हर है
बता तू आदमी या ज़ानवर है

कई ग़ज की ज़ुबां तेरी है लेकिन
तेरा क़द, सच कहूँ तो हाथ भर है

हमेशा देख मत पावों के छाले
कठिन कुछ और आगे का स़फर है

अँधेरा उस जगह बसता भी कैसे
जहाँ सूरज किया करता बसर है

यहाँ खुशियों पे भी पाबंदियां हैं
न जाने किस तरह का यह शहर है

दिखाऊँ किस तरह दिल खोलकर मैं
कि तेरे पास ही मेरा ज़िगर है