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तेरा इस्तेकबाल है / अशोक चक्रधर
Kavita Kosh से
कि हमारी आज़ादी भी
पचास की पूरी होने आई।
उसका भी लगभग यही हाल है
अपने ऊपर मुग्ध है निहाल है
ऊपरी वैभव का इंद्रजाल है
पुरानी ख़ुशबुओं का रुमाल है
समय के ग्राउंड की फुटबाल है
एक तरफ चिकनी तो
दूसरी तरफ रेगमाल है
संक्रमण के कण कण में वाचाल है
फिर भी खुशहाल है
क्योंकि दुनिया के आगे
विशालतम जनतंत्र की इकलौती मिसाल है।
ओ आज़ादी।
उमरिया की डगरिया के
पचासवें स्वर्ण मील पत्थर पर
तेरा इस्तेकबाल है !