भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ-साथ / परवीन शाकिर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ-साथ
ऐसी बरसातें कि बादल भीगता है साथ-साथ

बचपने का साथ, फिर एक से दोनों के दुख
रात का और मेरा आँचल भीगता है साथ-साथ

वो अजब दुनिया कि सब खंज़र-ब-कफ़ फिरते हैं और
काँच के प्यालों में संदल भीगता है साथ-साथ

बारिशे-संगे-मलामत में भी वो हमराह है
मैं भी भीगूँ, खुद भी पागल भीगता है साथ-साथ

लड़कियों के दुख अजब होते हैं, सुख उससे अज़ीब
हँस रही हैं और काजल भीगता है साथ-साथ

बारिशें जाड़े की और तन्हा बहुत मेरा किसान
जिस्म और इकलौता कंबल भीगता है साथ-साथ