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तेरा दोष / योगेन्द्र दत्त शर्मा

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तूने निर्णय लिये और फिर उन पर डटा रहा
तेरा दामन इसीलिए तो झीना-फटा रहा
तेरा है यह दोष कि तू सच कहता है!

बंधु! मसीहा बना रहा तू झूठे, मक्कारों में
नैतिकता का दिया वास्ता स्वार्थी व्यापारों में
मूल्यों के संकट से आखिर सिर्फ तुझे ही भय है
तेरे जैसे का पिस जाना लगता बिल्कुल तय है

अपने ही संदर्भों से तू हरदम कटा रहा
इसीलिए तू घोर यंत्रणा सहता है!

मूल्य बदलते हुए समय को तूने स्वयं नकारा
जीती बाजी भी अक्सर तू इसी वजह से हारा
स्वाभिमान से जीने वाले की होती यह गति है
तूने नहीं किया समझौता, तेरी यही नियति है

तू खंडित व्यक्तित्व लिये टुकड़ों में बंटा रहा
अपने ही प्रश्नों में तू अब दहता है!

ठीक समय पर सही नब्ज को तूने नहीं टटोला
हुआ शिकार गलत अनुमानों का, पर समय न तोला
तूने राजपथों को छोड़ा, पगडंडी अपनाई
कांटे आने ही थे पथ में, अब तू डरता, भाई!

जख्मी पांवों से तू पथ के कांटे हटा रहा
खून पांव से इसीलिए तो बहता है!

छीना झपटी, हाथापाई के इस युग में रहकर
तू निःस्पृह ही बना रहा, अपमान, उपेक्षा सहकर
वर्तमान को भूल, रहा कल्पनालोक में खोया
अपना जीवन-बेड़ा तूने अपने आप डुबोया

ईसा बनकर आदर्शों से चिपटा-सटा रहा,
इसीलिए तू टंगा क्रॉस पर रहता है!