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तेरा हुस्न भी बहाना मेरा इश्क़ भी बहाना / जमील मज़हरी
Kavita Kosh से
तेरा हुस्न भी बहाना मेरा इश्क़ भी बहाना
ये लतीफ़ इस्तिआरे न समझ सका ज़माना
मैं निसार-ए-दस्त-ए-नाज़ुक जो उठाए नाज़िशाना
के सँवर गईं ये ज़ुल्फ़ें तो सँवर गया ज़माना
तेरी ज़िंदगी तबस्सुम मेरी ज़िंदगी तलातुम
मेरी ज़िंदगी हक़ीक़त तेरी ज़िंदगी फ़साना
तेरी ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म ने नए सिलसिले निकाले
मेरी सीना-चाकियों से जो बना मिज़ाज-ए-शाना
तेरा नाज़-ए-किब्रियाई भी मक़ाम-ए-ग़ौर में है
के घटा दिया है सजदों ने वक़ार-ए-आस्ताना
मैं दरून-ए-ख़ाना आ कर भी लिए हूँ दाग़-ए-सजदा
है अभी मेरी जबीं पर असर-ए-बरून-ए-ख़ाना
कभी राह मैं ने बदली तो ज़मीं का रक़्स बदला
कभी साँस ली ठहर कर तो ठहर गया ज़माना