भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरी आँखों में मुझको, अपना घर नज़र आता है / तारा सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरी आँखों में मुझको, अपना घर नज़र आता है
ना फ़ेरो मुँह, तुझमें मुझे अपना मुकद्दर नज़र आता है

कभी कम न हुई, मेरी शबे-फ़ुरकत की स्याही, अब
तो इश्क का आईना भी, पत्थर नज़र आता है

दिल चाहता है, गमे दुनिया से निकलकर भाग जाऊँ
मगर कहीं नहीं गुम्बदे-गरदू का दर नज़र आता है

गुलशने-हस्ती की जिंदगी मेरी, एक सूखी डाली है
जहाँ से जीवन मेरा, आलूदा-ए-गर्दे सफ़र नज़र आता है

मुहब्बत पूजा है, इबादत है ख़ुदा की, इश्क की
इजहारे-फ़कीरी से मौत मुझे बेहतर नज़र आता है