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तेरी क़ातिल असि से मेरा / सुमित्रानंदन पंत
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तेरी क़ातिल असि से मेरा
साक़ी, जो कट जाए सर
नयनों के घन भी बरसाएँ
रुधिर अश्रुओं की जो झर!
रोम रोम मेरे शरीर का
यदि जी उठे पृथक् तन धर,
एक एक कर करूँ न तुझ पर
अगर निछावर, मैं कायर!