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तेरी नज़र से आज मैं / विजय वाते
Kavita Kosh से
तेरी नज़र से आज मैं, नज़र मिला के पी गया।
सुबह से मैं सुराइयाँ उठा-उठा के पी गया।
वो नींद थी, सुरूर था, या रात का खुमार था,
मेरी सुबह को आज मैं करीब पाके पी गया।
ऐ मेरी जां, तू खुद ही, सर से पाँव तक शराब है,
मैं दूर जा के पी गया, मैं पास आके पी गया।
ये ठीक है कि, है ग़लत, ये सोचने का होश कब,
मैं पाप को भी पुण्य की हदों से लाके पी गया।
तू क़ैफ है नशा भी है, तू होश की दवा भी है,
जो होश में विजय ही था, तो गुनगुना के पी गया।