भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरी मजबूरियां दुरुस्त मगर / नासिर काज़मी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 तेरी मजबूरियां दुरुस्त मगर
तूने वादा किया था, याद तो कर

तू जहां चंद रोज़ ठहरा था
याद करता है तुझको आज वो घर

हम जहां रोज़ सैर करते थे
आज सुनसान है वह राहगुज़र

तू जो नागाह सामने आया
रख लिए मैंने हाथ आंखों पर।