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तेरी माटी चंदन! / प्रतिभा सक्सेना

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तेरी माटी चंदन, तेरा जल गंगा जल,
तुझमें जो बहती है वह वायु प्राण का बल,
ओ मातृ-भूमि, मेरे स्वीकार अमित वंदन!

मेरे आँसू पानी, मेरा ये तन माटी,
जिनने तुझको गाया .बस वे स्वर अविनाशी!
मैं चाहे जहाँ रहूँ, मन में तू हो हर दम!

नयनों में समा रहे .तेरे प्रभात संध्या,
हर ओर तुझे देखे मन सावन का अंधा,
तेरे आँचल में आ, युग उड़ता जैसे क्षण!

तेरे आखऱ पढ़लूँ फिर और न कुछ सूझे
जो अधरों पर आये मन व्याकुल हो उमँगे,
लिखने में हाथ कँपे वह नाम बना सुमिरन!

तेरा रमणीय दरस धरती का स्वर्ग लगे
तेरी वाणी जैसे माँ के स्वर प्यार पगे,
अब तेरे परस बिना कितना तरसे तन-मन!

मेरी श्यामल धरती, तुझसा न कहीं अपना,
मैं अंतर में पाले उस गोदी का सपना,
जिस माटी ने सिरजा, उसमें ही मिले मरण!

मुझको समेट ले माँ, लहराते आँचल में,
कितना भटके जीवन इस बीहड़ जंगल में,
अब मुझे क्षमा कर दे, मत दे यों निर्वासन!