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तेरी रबूबियत में मेरा नक़्श-ए-पा भी हो / संजय चतुर्वेद

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तेरी रबूबियत में मेरा नक़्श-ए-पा भी हो
मंज़िल तो है मक़्सूद कोई रास्ता भी हो

हक़ है अज़ीज़ हमको हक़ीक़त भी है अज़ीज़
ज़िक़्र-ए-ख़ुदा के साथ में फ़िक़्र-ए-ख़ुदा भी हो

उसमें निगाह-ए-शौक़ हो ठण्डी हवा भी हो
रहमत का इन्तज़ाम फ़क़ीर-आशना भी हो

दे तीस मार ख़ान को जन्नत का आसरा
फिर मार दिए तीस तो दोज़ख़ अता भी हो

1996