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तेरे चरणों की शपथ / रामगोपाल 'रुद्र'
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तेरे चरणों की शपथ! काँप उठते हैं मेरे हाथ,
कर में होती है क़लम और जब तू रहता है साथ;
जैसे रिकॉर्ड की सुई, चाव तेरा भाँवर भरता है,
आविष्ट भाव का पटल अक्ष पर ध्रुव परिभ्रम करता है।