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तेरे जमाल में गुम हैं, तेरे ख़याल में गुम / 'महताब' हैदर नक़वी
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तेरे जमाल1 में गुम हैं, तेरे ख़याल में गुम
हमें भी देखते रहतें हैं किस कमाल में गुम
कोई किसी की तरफ़ देखता नहीं है यहाँ
हुई है ख़ल्क-ए-खुदा अपने ही जमाल में गुम
ये दर्द-ए-दिल कोई कार-ए-जुनूँ नहीं करता
कि हो गया किसी साअत-ए-जमाल2 में गुम
हमें तो दूर की अब सूझती नहीं भाई
कि हो गये हैं फ़क़त माज़ी3 और हाल4 में गुम
कोई कहीं पे महफ़ूज़ अब नहीं शायद
सो लोग हो गये तेग़-ओ-सिनाँ5 में ढाल में गुम
1-सुन्दरता 2-दुख का समय 3-अतीत 4-वर्तमान 5-तलवार और भाला