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तेरे बगैर जीने की चाहत कभी न की / कैलाश झा 'किंकर'
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तेरे बगैर जीने की चाहत कभी न की
मैंने यहाँ कभी किसी से आशिकी न की॥
मुझको पसंद है वही अब आपकी पसंद
सच मानिए तो मैंने भी ग़लती बड़ी न की।
आएँ हुजूर आपका स्वागत है हर घड़ी
उस बार आपसे तो मैंने बात भी न की।
दिल में रहें रहा करें है आरजू यही
अब तक तो आपने भी मेरी रह-बरी न की।
फँसते हैं लोग लोभ में लालच में रात दिन
अरमान को उछाल मैंनै गड़बड़ी न की।
अपने हिसाब से सभी चलते हैं उम्र-भर
अपराधियों से मैंने "किंकर" दोस्ती न की।