भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरे बिन / कमलकांत सक्सेना
Kavita Kosh से
तेरे बिन प्रियतम,
पल भर भी
रह न सकूंगा॥
मेरे नयन स्वप्न से बोझिल
सुधियों में डूबे हैं।
अब मिलते हैं,
अब मिलते हैं
क्वांरे मनसूबे हैं।
मन से मन की किंचित दूरी,
सह न सकूंगा॥
तेरे बिन प्रियतम,
पल भर भी
रह न सकूंगा॥
यथाशक्ति
मैं बाट जोहकर
अपने घाव भरूंगा
मेरा क्या है पंछी हूँ मैं
नूतन नीड़ रचूंगा।
मेरा प्यार परम पावन है,
कह न सकूंगा॥
तेरे बिन प्रियतम,
पल भर भी
रह न सकूंगा॥