लेखन वर्ष: २००३
तेरे रेशमी बदन से सरकता है यह दुप्पटा
हज़ारों आहें लहू में डूबकर आग बन जाती हैं
ज़ालिम तेरे तआक़ुब की यह अदा भी ख़ूब है
लेखन वर्ष: २००३
तेरे रेशमी बदन से सरकता है यह दुप्पटा
हज़ारों आहें लहू में डूबकर आग बन जाती हैं
ज़ालिम तेरे तआक़ुब की यह अदा भी ख़ूब है