भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरे रेशमी बदन से सरकता है यह दुप्पटा/ विनय प्रजापति 'नज़र'
Kavita Kosh से
लेखन वर्ष: २००३
तेरे रेशमी बदन से सरकता है यह दुप्पटा
हज़ारों आहें लहू में डूबकर आग बन जाती हैं
ज़ालिम तेरे तआक़ुब की यह अदा भी ख़ूब है