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तेरे हसीन ख़यालों से मेरा साथ रहा / सुरेश चन्द्र शौक़

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तेरे हसीन ख़यालों से मेरा साथ रहा

न जाने कितने उजालों से मेरा साथ रहा


निखरता क्यूँ न बिल—आख़िर शुऊर का चेहरा

शराब—ए—ग़म के पियालों से मेरा साथ रहा


कभी जो की है परस्तिश तो सिर्फ़ इन्साँ की

न मस्जिदों न शिवालों से मेरा साथ रहा


हमेशा शिद्दते एहसास ने जलाया मुझे

हमेशा क़ल्ब के छालों से मेरा साथ रहा


कुदूरतों के अँधेरों से मेरा बैर था ’शौक़’

महब्बतों के उजालों से मेरा साथ रहा.


बिल-आख़िर=आख़िर कार; शुऊर=शिष्टता;परस्तिश=उपासना; शिद्दते—एहसास=एह्सास की तीव्रता;क़ल्ब=हृदय;कुदूरतों =रंजिशें