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तोड़ना गढ़ने से ज़्यादा मूल्यवान है / शक्ति चट्टोपाध्याय / मीता दास

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पता नहीं किस तरह छन्दों का बरामदा तोड़ा जाएगा
मिस्त्री मौजूद हैं, उनके पास है सब्बल, गैंती
जनबल है और है तोड़ने के निश्चित निर्देश भी,
तोड़ने की क्षमता भी है, ज़रूरत भी ।

बरामदे ने भी जान लिया : सभी तोड़ने में नहीं है सक्षम ।
तोड़ने का भी एक निजी छन्द होता है, रीति होती है — प्रथा होती है,
उबड़-खाबड़ तरीके से तोड़ने पर, तोड़ने का विज्ञान थूकेगा देह पर
और लोग कहेंगे, इसे ही नष्ट-भ्रष्ट करना कहते हैं ।

अशिक्षित भी कहेंगे कई लोग, कोई कहेगा मूर्ख,
तोड़ना सीखना पड़ता है —
सुन्दरतम तरीके से तोड़ना, गढ़ने से ज़्यादा होता है मूल्यवान
कभी-कभी ।

मीता दास द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित