भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोरा बिना गरमीं / कस्तूरी झा 'कोकिल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोरा बिना गरमीं बैताल लागै छै।
पछिया दुपहरिया महाकाल लागै छै।
चैते में पानी
पताल भेलऽ छैं
पशु-पंछी खातिर
अकाल भेलऽ छै।
पानी बिना धरती फटेहाल लागै छै।
तोरा बिना गरमीं बैताल लागै छै।
भोर भोर सूरूज,
अंगोरा लागै छै।
पूरवा पवन तनींसन
मिंगोरा लागै छै।
दस बजियो रौदा चंडाल लागै छै।
तोरा बिना गरमीं बैताल लागै छै।
रात भर बिछौनाँ सें
आग फूकै छै।
चँदा सिताराँ की
हाल पूछै छै?
गरमीं बेशरमीं केॅ चाल लागै छै।
तोरा बिना गरमीं बैताल लागै छै।

25/04/16 रात्रि साढ़े सात बजे