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तोरा लेल / नरेश कुमार विकल
Kavita Kosh से
लटकल लट सँ चुबै छौ घाम गय।
आँखिक नरम सेज हमरा बिछा दे
कारी सघन केश मुँह पर ओढ़ा दे
ठोरक धार मे हमहू नहाएब
नहाएब ने कोशी आ कमला-बलान गय।
आँचरक बीअनी बसातो बहाबै
चूड़ीक मधुर सुर हमरा सुनाबै
स्कॉच-व्हिसकी सन चढ़ल रंग छौ।
वाजब तोहर जेना चीनी रैयाम कें।
तोहर नयन कें बिसरि ने सकै छी
बिसरबें ने हमरा तोहूँ, जनैछी
मुदा डर लागैयै कोना प्राण बाँचत
जहिया तों छोड़ि कें चलि जयबें गाम गय।
पान ओ मखान कें चोरा कऽ खोआओत ?
उज्जर दही के मुँह मे लगाओत ?
तरल माछ लऽ के हमरा लोभाओत
के आब खोआओत गाछीक आम गय।