भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तो क्या तड़प न थी अब के मिरे पुकारे में / शहराम सर्मदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तो क्या तड़प न थी अब के मिरे पुकारे में
वगर्ना वो तो चला आता था इशारे में

वो बात उस को बताना बहुत ज़रूरी थी
वो बात किस लिए कहता मैं इस्तिआरे में

मुदाम हिज्र-कदे में वो याद रौशन है
कहाँ है ऐ दिल-ए-नाकाम तू ख़सारे में

मिरे अलावा सभी लोग अब ये मानते हैं
ग़लत नहीं थी मिरी राय उस के बारे में

फ़क़ीर है प करामत किसी ने देखी नहीं
गुज़र-बसर ही किया करता है गुज़ारे में