भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

त्याग / प्रतिभा चौहान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम में सुकून को सजा देना
माना की जायज़ है
पर साथी की नींद से खेलना भी तो एक बेईमानी है
क्या टिमटिमाती रातों को भी
सूरज का इन्तज़ार रहता है
या कर देती है
अपना सब कुछ बलिदान
प्रेम में दिन के तारे को.....
डोलते समुद्र की लम्बी-छोटी थिरकती लहरें
देती है बुलावा पहाड़ो की रानियों को
आगोश में मिटा देती हैं
अपनी हस्ती और अस्मिता भी
क्या प्रेम का दूसरा नाम नहीं यह....