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त्याग / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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दियो जिन प्रान कथा सुख संपति बीच मिले वहु नेह न कोरे।
होत कहाँ व कहा कहि आव, सो क्यों विसराय करो कछु औरे॥
योग न त्याग विराग गहो, धरनी धन-काज कहाँ पचि दौरे।
अन्तहु तो तजि है सब तोहि सो तून तमजो अबही किन बौरे॥27॥