त्रासदी : एक महान संकट / पंकज चौधरी
जो खुद दुनिया को खिलाता रहा
वही भूखा रह गया
जो खुद संसार में उजाला फैलाता रहा
वही अंधेरा में रह गया
जो खुद दुनिया को हरा-भरा करता रहा
उसी के मन में सूखा रह गया
जो खुद दुनिया को हंसाता रहा
उसी के अंतस् में अंधेरा छाया रहा
जो खुद दुनिया के लिए घर-बार बनाता रहा
वही बेघर रह गया
जो खुद दुनिया के लिए शुभ-लाभ रहा
वही अशुभ रह गया
जो खुद दुनिया भर में प्यार बांटता रहा
वही प्यार के लिए तरसता रहा
जो खुद दुनिया को अहिंसा का सन्देश देता रहा
वही हिंसा का शिकार हो गया
जो खुद दुनिया के लिए महला-दोमहला बनाता रहा
वही जंगलों में रह गया
जो खुद दुनिया को स्पृश्य बनाता रहा
वही अस्पृश्य बना रह गया
जो खुद ईश्वरों का आविष्कार करता रहा
वही कुम्हार बना रह गया
जो खुद दुनिया का तन ढंकता रहा
वही जुलाहा बना रह गया
जो खुद दुनिया को कांटों से बचाता रहा
वही चमार बनकर रह गया
जो खुद दुनिया को अपने कन्धों पर ढोता रहा
वही कहार बनकर रह गया
जो खुद दुनिया को अमृत पिलाता रहा
वही ग्वाला बनकर रह गया
जो खुद दुनिया को दर्शनीय बनाता रहा
वही हज़्ज़ाम बनकर रह गया
जो खुद दुनिया को जन्नत की सैर कराता रहा
वही कलबार बनकर रह गया
जो खुद दुनिया को चमन बनाता रहा
वही मेहतर बनकर रह गया
और जो परजीवी बनता चला आ रहा है
वही राजा बनता चला जा रहा है!