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थकन / सारिका उबाले / सुनीता डागा
Kavita Kosh से
एक
पूरी तरह निचोड़कर रख देने वाली
थकन
अम्लान अम्लान अम्लान !
खुरच-खुरचकर निकाले
कत्थई भूरे टुकड़े
आख़िरी
कूड़ेदान में लाल-लाल
डेटॉल में डूबे
गीले रूई के फाहे ।
एक लाल मर्कट
अधखुली आँखों के सामने
दाँत निपोरकर
भयावह ज़ोरदार तमँचा पीटता हुआ
चाबी के ख़त्म होने तक ।
एक
रैपर में लिपटी
आँखों को मिचकाती
गुलाबी गुड़िया ।
अधसिले
लाल-हरे
मुलायम बिछौने का धागा
मैं उधेड़ती रहती हूँ चोंच से ।
चीर-फाड़ कर काटा गया गर्भाशय
रिसता रहता है अविरत
उस मटमैले-लाल
अजस्त्र प्रवाह में
तैरती पृथ्वी को
एक हाथ से तौलकर
मैं थूकती हूँ
व्यवस्था के मुँह पर
अब कभी भी…
कुछ भी…
नहीं जनने का निश्चय करते हुए ।
मूल मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा