थका आवारापन मेरा यही बेहतर समझता था / आशुतोष द्विवेदी
थका आवारापन मेरा यही बेहतर समझता था -
तुम्हारे घर चला आया कि अपना घर समझता था
तुम्हें शायद नहीं मालूम लेकिन है यकीं मुझको,
मेरे क़दमों की बेचैनी तुम्हारा दर समझता था
तुम्हारे नूर ने मुझको मेरी औकात दिखला दी,
नहीं तो ख़ुद को मैं अब तक बड़ा शायर समझता था
बिठाना मेल दुनिया से हुआ मुश्किल इसी कारण -
मैं जो भीतर समझता था, वही बाहर समझता था
मुझे वो छोड़ आए डाकुओं के गाँव ले जाकर,
जिन्हें मैं दोस्त कहता था, जिन्हें रहबर समझता था
मेरे महबूब को नज़रों पे' था कुछ कम यकीं शायद,
वो रिश्तों की नज़ाकत हाथ से छूकर समझता था
निगाहों की शरारत पर मुझे बदनाम कर डाला,
वो मेरी बात का मतलब ग़लत अक्सर समझता था
पकड़कर कान उसके, बज़्म से बाहर किया हमने,
वो था अफ़सर कि जो महफ़िल को भी दफ़्तर समझता था
भरम टूटा, खिलीं होठों पे' जब महकी हुई गज़लें,
ज़माना इश्क की तक़दीर को बंजर समझता था