भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थकी माँदी हुई बेचारियाँ आराम करती हैं / मुनव्वर राना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थकी-मांदी हुई बेचारियाँ आराम करती हैं
न छेड़ो ज़ख़्म को बीमारियाँ आराम करती हैं

सुलाकर अपने बच्चे को यही हर माँ समझती है
कि उसकी गोद में किलकारियाँ आराम करती हैं

किसी दिन ऎ समुन्दर झांक मेरे दिल के सहरा में
न जाने कितनी ही तहदारियाँ आराम करती हैं

अभी तक दिल में रोशन हैं तुम्हारी याद के जुगनू
अभी इस राख में चिन्गारियाँ आराम करती हैं

कहां रंगों की आमेज़िश<ref>प्रकटन</ref> की ज़हमत<ref>कष्ट</ref> आप करते हैं
लहू से खेलिये पिचकारियाँ आराम करती हैं

शब्दार्थ
<references/>