भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थके हुए साथी से / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1

हमने सुना : तुम अब हमारे साथ काम नहीं करना चाहते ।
तुम बदहाल हो । तुम चलने-फ़िरने के काबिल नहीं रह गए ।
तुम बेहद थक चुके हो । तुम अब कुछ सीख नहीं सकते ।
तुम ख़त्म हो चुके हो ।
तुमसे अब यह माँग नहीं की जा सकती कि तुम कुछ करो ।
 
कान खोलकर सुन लो :
हम यह माँग करते हैं —
अगर तुम थके हो और होश खो बैठे हो
कोई तुम्हें जगाएगा नहीं और तुमसे यह कहेगा नहीं :
जागो, खाना तैयार है ।
आख़िर खाना क्यों यूँ पड़ा रहे ?
 
अगर तुम चल-फ़िर नहीं सकते
तो तुम वहीं पड़े रहोगे । कोई भी
तुम्हें ढूँढ़कर कहेगा नहीं :
क्रान्ति हो चुकी है । कारख़ानों को
तुम्हारा इन्तज़ार है ।
आख़िर कोई क्रान्ति क्यों हो ?
 
अगर तुम मर जाओगे, वे तुम्हें दफ़ना देंगे
चाहे तुम अपनी मौत के कसूरवार हो या नहीं ।
  
तुम कहते हो :
काफ़ी अरसे तक तुम लड़ चुके । अब तुम और नहीं लड़ सकते ।
तो फिर सुन लो :
चाहे कसूर तुम्हारा हो या नहीं,
अगर तुम नहीं लड़ते, तो बरबाद हो जाओगे ।

2

तुम कहते हो : लम्बे समय तक तुम्हें उम्मीद थी,
पर अब उम्मीद बाक़ी नहीं रह गई ।
तुम्हें क्या उम्मीद थी ?
कि लड़ाई आसान होगी ?
ऐसी बात नहीं है ।
 
तुमने जितना सोचा था, हमारी हालत उससे भी ख़राब है ।
ऐसी है वह :
अगर हम बेहद ख़ास कुछ कर न सके
हम हार चुके होंगे ।
अगर हम वो न कर सके, जिसकी माँग हमसे कोई नहीं करता
हम बरबाद हो जाएँगे ।
 
हमारे दुश्मन इन्तज़ार कर रहे हैं
कि हम थक जाएँ ।
जब लड़ाई सबसे ज़्यादा तेज़ होती है
लड़ने वाले ही सबसे ज़्यादा थकते हैं ।
जब लड़ने वाले थककर चूर हो जाते हैं,
वे लड़ाई हार जाते हैं ।

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य