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थमना कैसा ? / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
जीवन में थमना कैसा ?
गति ही चेतन जीवन है,
गति-मुक्त
मनुज का अस्तित्व नहीं,
गति ही जीवन,
ईप्सित बंधन है !
हर्ष-विषाद व निश्चय-भ्रम,
बिखरा-बिखरा दैनिक-क्रम,
जीवन की
स्वस्थ प्रखर गति का सूचक है !
जीवन में स्थिरता कैसी,
- जमना कैसा ?
- जमना कैसा ?
जीवन बहता सोता है जल का,
इसमें तनिक विचार न होता
- बीते कल का !
धारा है यह,
घहर-घहरकर उमड़ेगा
सावन-भादों के मेघों-सा
काल-पृष्ठ पर
रह-रह घुमड़ेगा !
बहते जाओ, बहते जाओ,
गिर-गिरकर
उठ-उठकर
पथ की निर्मम चोटों को
- सहते जाओ,
गति-प्रेरक गीता कहते जाओ !
भूल कहीं भी जीवन में
- रुककर रमना कैसा ?