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थां नें म्हारौ घर बळा द्यौ, या घणी चोखी करी / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'

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थां नें म्हारौ घर बळा द्यौ, या घणी चोखी करी
सगळौ झंझट ई मटा द्यौ, या घणी चोखी करी

बाळ ई देतौ यो सूखा रूखडा नें तावडौ
थां नें सुरज ई छुपा द्यौ, या घणी चोखी करी

पा के सुपणां में खुश्यां म्हूं सब दुखां सूं दूर छौ
थां नें सूता सूं जगा द्यौ, या घणी चोखी करी

सुर्ग रच ल्यौ खुद के लेखे अ’र यौ म्हां के वास्ते
नर्क धरती पे बणा द्यौ, या घणी चोखी करी

रात स्यळौ ले ई ग्यौ वा भूख का बीमार नै
सारा झगडां सू छुडा द्यौ, या घणी चोखी करी

काणै काईं गुल खिलातौ बावळी छोरी कौ पेट
मुर्गौ तन्दूरी बणा द्यौ, या घणी चोखी करी

जहैर भर द्यौ दुस्मनाई को कौ’र प्रेम - अमरित "यकीन"
मनख्यां का मन सूं उठा द्यौ, या घणी चोखी करी