भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थाने का कारकून / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चूहेजी की रपट लिखाने,
बिल्ली पहुँची थाने।
जगह-जगह पर खोद लिए हैं,
उसने बिल मनमाने।

जब भी जाती उसे पकड़ने,
बिल में घुस जाता है।
दिन भर रहती खड़ी मगर,
वह बाहर न आता है।

कोतवाल ने रपट अभी तक,
लिखी न मेरे भाई।
चूहे के संग मिली भगत,
मुझको पड़ती दिखलाई।

रोटी के कुछ टुकड़े चूहा,
थाने भिजवाता है।
थाने का हर कारकून,
मिलकर टुकड़े खाता है।