भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थाम ले रश्मि-रथ / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
पंथ दूरत्व का भार भय
(दूर कर)
हो अभय
पाँव धर प्राप्त कर दिग्विजय
आँधियाँ सौतिया डाह से
तोड़तीं आस्था राह से
अपशकुन कर सुना-अनसुना
प्यास की आस में गुनगुना
एक स्वर, एक लय
हो अभय
पाँव धर प्राप्त कर दिग्विजय
स्रोत उत्साह का तू बहा
हर विपत्ति पर लगा कहकहा
मुस्कुरा, बिजलियों के तले
थाम ले रश्मि-रथ बाँध ले
मुट्ठियों में समय
हो अभय
पाँव धर प्राप्त कर दिग्विजय