भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थार-1 / मीठेश निर्मोही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पल में पसरै
छिण में तण जावै
रमतोड़ौ
उणियारा बदळै
थूं।
लागै
मिनखां सूं
धरमेलौ
कर लीन्हौ
थूं।