भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थार-2 /मीठेश निर्मोही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरती-आभै
जितरी लंठी
थारी
कद-काठी।

बावळ सरीसौ
थारो
सांस।

समदर रै उनमांन
पसराव।
नीं थाकै
नीम हारै
थूं।

वाह रे
थळवट रा उमराव।