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थार / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
मैं
थार हूँ
सूरज की तरह गर्म
और
चांद की तरह नर्म।
मेरे बदन पर
पसरी रेत
केवल रेत नहीं
एक कहानी हैं।
इसके सान्निध्य में
आकर
ऋषि-मुनियों
शूरवीर और छत्रधारियों ने
हदय परिवर्तित किये है।
यह मेरी रेत के कण का
तेज है
जो माथे पर लग जाने से
आदमी
मर-मिटता है देश पर।
मेरी कहानी
खेजड़े
फोग
बेर और आक जानते हैं।
जो
वर्षो से
प्यासें खड़े
अंतस जाप करते हैं।
ये शूरवीर हैं
जो अपनी धरती के लिए
जीते हैं-मरते हैं।
मेरे धोरे
प्यासे जरूर हैं
मगर धैर्यहीन नहीं हैं
उड़-उड़ कर जाते हैं
इनके कण आकाश तक
निश्चय के साथ
कि कभी ले आएंगे
बरसते आसमान को
धरती पर उतार कर।
कभी तो
बरसना ही होगा
थार मे जमकर
इसीलिए
मेरे बदन पर खड़े हैं
मेरे जाए थम कर।