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थोड़ा-सा वक़्त के जो तक़ाज़े बदल गए / ओम प्रकाश नदीम
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थोड़ा-सा वक़्त के जो तक़ाज़े बदल गए ।
उनके तमाम नेक इरादे बदल गए ।
हम अपनी कैफ़ियत से सुबकदोश क्या हुए,
गुस्ताख़ आरज़ूओं के लहजे बदल गए ।
बनना था जिनको हाल के हालात का बदल’
मैं उनसे पूछता हूँ वो कैसे बदल गए ।
अब भी मक़ाम-ओ-मर्तबा अपनी जगह पे हैं,
लेकिन वहाँ पहुँचने के रस्ते बदल गए ।
जारी है अब भी मुर्दा रिवायात का सफ़र,
मय्यत थी जिन पे सिर्फ़ वो काँधे बदल गए ।
ज़ाहिर करें जो बात वो ज़ाहिर न हो ’नदीम’,
इज़हार के वो तौर-तरीक़े बदल गए ।