थोड़ी-सी प्यार की बातें / सुनील गंगोपाध्याय / उत्पल कुमार
महज अमृत में वैसा कोई ढंग का स्वाद नहीं है,
थोड़ा-बहुत नमक-मिर्च डालना पड़ता है
प्यार के साथ जिस तरह दो-तीन तरह की दुविधाएँ
प्यार की बातों पर याद आया,
जिन लोगों ने सारी ज़िन्दगी
प्यार को समझा ही नहीं
उनके ज़िन्दगी जीने का रहस्य क्या है?
नहीं जानते हैं बहुत-से लोग
जान ही नहीं पाते हैं
बेझिझक वे क्या नहीं करते हैं,
वे सब कौन हैं?
बिन प्यार के पति-पत्नियों से जो बच्चे पैदा होते हैं
उनके गले की आवाज़ सुनकर ही पहचाना जा सकता है
सारी ज़िन्दगी वे न जाने कितने ही अधूरे वाक्य बोलते हैं,
राहों में पड़े असंख्य मोती भी वे ढूँढ़ नहीं पाते हैं।
बिन प्यार के सभी मनुष्य सीढ़ियाँ पसन्द करते हैं
ज़रा ग़ौर से देखो, उनकी सभी उँगलियाँ बराबर दिखेंगी
टिंगनी उँगली में अँगूठी पहनने वाले लोग कम हैं क्या?
एक दिन वे सभी अँगूठी पहनने वाले मनुष्य
कूद पड़ेंगे लड़ाई के मैदान में
जो प्यार से ... इतराते हैं,
उन्हें निर्मूल कर देंगे क्या पृथ्वी से?
उतना आसान नहीं
जो प्यार करते हैं वे अमृत के साथ थोड़ा ज़हर मिलाकर
पहले ही जो पी लिया करते हैं।
मूल बांग्ला से अनुवाद : उत्पल कुमार