थोड़े से प्यार के अक्षर / ओएनवी कुरुप / एन० ई० विश्वनाथ अय्यर
एक चिड़िया अपने परों में से
एक पँख मेरे सामने डाल उड़ गई —
यह तुम ले लो ।
कदली-कुसुम के पौधे ने
अपने फल का दाना
मेरी ओर बढ़ाया और कहा —
तुम इसका रंग ले लो ।
एक भुर्ज वृक्ष ने मुझसे कहा —
मेरी चिकनी छाल का
एक छोटा सा टुकड़ा लो !
मैं अनजाने में पूछ बैठा —
बोलो ! मैं कवि हूँ, तुम्हें क्या लिखकर दूँ ?
जवाब मिला —
लिख छोड़ना, थोड़े से प्यार के अक्षर
हमारे लिए ।
आख़िरी पक्षी भी जाने कौन सा तीर खाकर
मेरे हृदय के नभ-तल पर
तड़प-तडपकर गिर पड़ा !
इस पाठ के किनारे
कदली-कुसुम के पौधे का
स्थान भी विस्मृति में लीन हो गया !
प्रिय भुर्ज वृक्ष भी
किसी पूरण के दीमक खाए
किसी पृष्ठ पर गल गया !
अब मेरे पास सोने का पंख कहाँ ?
स्याही कहाँ ? कागज़ कहाँ ?
अब मैं किस के लिए क्या लिखूँ ?
कहीं से मुझे
यह उत्तर सुनाई दे रहा है —
इतना सा प्यार देकर
सब कुछ फिर से पा सकते हो ।
मूल मलयाली से अनुवाद : एन० ई० विश्वनाथ अय्यर