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दंगा / कुमार अनुपम
Kavita Kosh से
बर्बरता का ऐतिहासिक पुनर्पाठ
आस्था की प्रतियोगिता
कट्टरता का परीक्षण काल था
यह
धार्मिकता का
सुपीरियारिटी सत्यापन था
फासिस्ट गर्व और भय
की हीनता का उन्माद था
यह
जातिधारकों
के निठल्लेपन का पश्चात्ताप था
यह
अकेलों के एकताबाजी प्रदर्शन
का भ्रमित घमंड था
कुंठाओं को शांत करने
के प्रार्थित मौके की लूट
मनुष्यता के खिलाफ
मनुष्यों की अमानुषिक स्थापना
धर्मप्रतिष्ठा के लिए
एक अधार्मिक प्रायोजन था
यह
व्यवस्था संरक्षक
के नपुंसक नियंत्रण
का तानाशाही साक्ष्य था
सभ्यता के कत्ल
की व्यग्र बेकरारी
का कर्मकांड था यह
हमारे समय में
जिसे मनाया जा रहा समारोह की तरह
जगह जगह