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दख़्ल हर दिल में तिरा मिस्ल-ए-सुवैदा हो गया / शेख़ अली बख़्श 'बीमार'
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दख़्ल हर दिल में तिरा मिस्ल-ए-सुवैदा हो गया
अल-अमाँ ऐ ज़ुल्फ-ए-आलम-गीर सौदा हो गया
गो पड़ा रहता हूँ आब-ए-अश्क में मिस्ल-ए-हबाब
सोज़िश-ए-दिल से मगर सब जिस्म छाला हो गया
ऐ शह-ए-ख़ूबाँ तसव्वुर से तिरे रूख़्सार के
चश्म का पर्दा बे-ऐनिहि लाल-ए-पर्दा हो गया
फ़र्क-ए-रिंदान-ओ-मलाइक अब बहुत दुश्वार है
मय-कदा उस के क़दम से रौशन ऐसा हो गया
दान-ए-अँगूर अख़्तर चाँदनी मय माह जाम
नस्र-ए-ताएर बत क़राबा चर्ख़ मीना हो गया
सुनते हैं ताइब हुआ उस बुत के घर जाने से तू
क्या तिरा ‘बिमार’ पत्थर का कलेजा हो गया