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दखिने पवनसुत द्रुत गमन करु / भोजपुरी

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दखिने पवनसुत द्रुत गमन करु, भरि गइले अवगाह।
दखिन देस बिकट पंथ सामी, कि जनि जइह भादो के मास।।१।।
बड़वन जइबो सामी बड़ा कष्ट पइबो, कष्ट मरि जइबो भूखिया-पियास
माता के हाथे की भोजनी समुलब, तिरिया के डांसल सेज।।२।।
कि ‘नारद-नारद’ कहि के पुकारब, कि सोइत रहब बनमांझ।।३।।
सखि हो हरि रामा।।0।।
हो रे, घरहिं बारे खाट सुवैया, बाहरे विरिछिया के आस।
बाहर बासा कोंहारे के आवा, फिरि-फिरि बनिया दोकान।।४।।
सखि हरि रामा.
हाँ रे, कायापुरवा मथनी, मायापुरवा बान्हो, जो न होइहें सेज साथ
जीवन जनम सफल भल रहिहें, तरहिं जइबों जगरनाथ।।५।।
हाँ रे, उतरत भादो चढ़ल कुआर, कि गडुल भइले पंख-झाड़
मोर डोरी लागेला सुरुज गोसईंया, कि परिछन जइबों गे जगरनाथ।।६।।
सखि हरि रामा।।0।।
महीनवाँ माघ के बादर सामी कि सरद महीनवाँ के घाम
इन्ह तीनहूँ से हारहु सामी, जइसे बीराना के काम।।६।।
हाँ रे, सूतल रहलीं सीरी बँसहर घर, कि सपना देखिले अजगूत
सपने-सपन हम कासी नहइलों, सपने पूजलों जगरनाथ।।८।।सखि हरि रामा।
हो रे, झूठ तोरे सपना कि झूठे तोर बिपना, कि झूठे मुखे बचन तोहार
कि सूतल रहलों में एक संगे सेजिया, कि कइसे गइले जगरनाथ।।९।।
हाँ रे, पाकर-पीपर अउरी घन तरिवर, सेअंमरा जे लागेले आकास
ताहि तर कुँअर पलंगा डंसवले, नित दिन गावत उदास।।१0।।सखि हरि.
हाँ रे सभवा बइसल तुहूँ ससुर बढ़इता कि सुनु ससुर बचन हमार।
हाँ रे, आपन पुत्र अपने परबोधीं कि नित दिन गावत उदास।।११।।
रामा हाँ रे पुत्र बोलाइके जांघे बइठवले, कि सुनु पुत्र बचन हमार,
कि अनका बारी तिया तोही हाथे सौंपलीं, कि कामिनि करत वियोग
हाँ रे, बाबा के सौंपिले अन-धन-सोनवा-कि भइया के सहर भंडार
माता के सौंपिले इहो बारीह कामिन, कि परिछन जइबों जगरनाथ।।१३।।
हाँ रे, बारी जो रहितें, त बरिजतीं बहुरिया, छैला वरिजलो ना जाय
कुइयवाँ जो रहितें, कोड़िके भथइतों, समुद्र अथवलों ना जाय।।१४।।
सखि हरि राम।।0।।
हाँ रे, मचिया बइठल तुहूँ सासु बढ़इतिन, सुनु सासु बचन हमार
कि आपन बेटा अपने परबोधीं, कि नितदिन गावत उदास।।१५।।
कि हो सखि हरि रामा।।0।।
हाँ रे, पुत्र बोलाइके जांघे बइठवली कि सुन पुत्र बचन हमार
कि अनकर बारी तिया तोही हाथे सौंपलीं, कामिनी करत बिरोध।।१६।।
हाँ रे, बावा के सौंपिले अन्न-धन-सोनवां कि भइया के सहर भंडार,
माता के सौंपिले इहो वारी कन्ना, कि परिछन जइबों जगरनाथ।।१७।।
हाँ रे, बारी जो रहितें, बरिजतों बहुरिया, छैला बरिजलो ना जाय
कि गलिया जो रहितें, खिड़की बेढ़इतों, कि डगर बेढ़वलो ना जाय।।१८।।
सखि हरि रामा।।0।।
कायापुरवा मथनी, मायापुरवा बान्हों जो न होइहें संग साथ
जीवन जन्म सुफल भल रहिहें, तबहिं जइबों जगरनाथ।।१९।।
हाँ रे, सुर-नर कातिक सुनहु मोर सामी, प्राते करहु असनान
माता-पिता-गुरु-साधु को सेवा, इहो त करहु मन लाय।।२0।। सखि हरि.
घरहिं मन माता, घरहिं त पिता, घरहिं सहोदर जेठ भाय
इन तीनउ ऊंचे कइ मनिह, घरहिं पूजिह जगरनाथ।।२१।।सखि हरि रामा।
हाँ रे भाई सहोदरहित ना होइहें, उहो ना जइहें संग-साथ
कि इ दुनु जंघिया सहाबत रहिहें, कुसल परिछबों जगरनाथ।।२२।।
माता रोइहें तोरा ‘पूता-पूता’ कहिके, कि बहिनि रोइहें छव मास
कि हम धनि रोअबों ‘सामी-सामी’ कहिके, कि केकर जोहब आस।।२३।।सखि.
हाँ रे, माता जो रोइहें मोरा जीयते जनमवा, बहिना रोइहें निछुधाह
तुहूँ धनि रोअबू त घरी रे पहरवा, पर-घरवा जोहेलू आस।।२४।।
सखि हरि राम।
कायापुरवा मथनी, मायापुरवा बान्हों, जो न होइहें संग-साथ
जीवन जन्म सफल भल रहिहें, तबहिं जइबों जगरनाथ।।२५।।
अगहन आगे चेतहु मोरे सामी, सुनु सामी बचनी हमार,
हीरा-मानिक दुनु काने के तरुअनवों, अभरन लेहु ना उतार।।२६।। सखि.
भले ते कहलु धनि, भले समझवलू, जे मनवाँ तोरे से मोर
हीरा त मानिक दुने काने तरुअनवाँ, इहो बेंचि करबों अहार।।२७।।
सखि हरि.
कुल कुलंधर पुरुष पुरंधर, सुनु पुरुस बचनी हमार
काढ़ि कटरिया त्रिया के चीरहीं दीह, तबहिं जइह जगरनाथ।।२८।।
कायापुरवा मथनी, मायापुरवा बान्हों, जो न होइहें संग साथ
जीवन जन्म सफल भल रहिहें, तबहिं जइबों जगरनाथ।।२९।।
सखि हरि रामा।
हाँ रे, मइल कपड़वा तन झांझर सामी, चिकसा विनु सूखल सहीकिखा
भल-भल मानुस कहिहें भिखारे, कि चलत में प्रेम सनेह।।३0।।
सखि हरि रामा।
हाँ रे, रातुल धोती करबों झीनी त चदरिया, पीठी लेबसे कमर कसे
ठाकुरजी के हम किरिपा मनइबों, से कि कुशले परिछबों जगरनाथ।।३१।।
सखि हरि.
हाँ रे, धरहीं त खाल सामी धीव-मधु भोजनी, बहरे त सूखले गरास।
कबहीं खइब सामी, कबहीं के नाहीं, कबहीं के परब उपास।।३२।।
हाँ रे, पूसहिं मासे पूस-बरती नहइलीं, पूजलीं में गउरी निधान
बारे बलमू मोर परदेसे जइहें, कि अभरन कवन सिंगार।।३३।।
कायापुरवा मथनी, मायापुरवा बान्हों, जो न होइेहें संग-साथ
जीवन जन्म सुफल भल रहिहें, तबहिं जइबों जगरनाथ।।३४।।
हाँ रे, मुनि सब, मुनि सब तीरथ चललें, मकर करेले असनान,
माघ महीना तिरवेनी के महातम, से हो कइसे परदेस जाय।।३४।।सखि हरि.
तीरथ उमिरिया हम तीरथ करबों, नाहीं भोगब नरक अघोर
तीरथ कइलें चरन हम बझुक धरबों में लढेकवा निधान।।३५।।
हाँ रे, घर तखिर सुख संपत सामी, पल्लोत होखेला आकास
पथल पूजि के पघत घरे अइबों, तबहिं होइहें जीव थीर।।३६।। सखि हरि.
एक धह, दुइ धह, धह त सहस्र धह, धह भोग लखकर पथल-पर्यंत धह
अइबों कि तबहीं होइहें मोर जीव थीर।।३८।।सखि हरि रामा।
कायापुरवा मथनी, मायापुरवा बान्हों, जो न हो इहाँ संगा साथ
जीवन जनम सुफल भल जहिहें, तबहिं जइबों जगरनाथ।।३९।।
फागुनमासे बसन्त रितु मसामी, सुनु सामी बचन हमार
सब त सखिन मिलि चांचर गावे, हम तिरिया लागी माया-मोह।।४0।।सखि.
हाँ रे, तुहुँ बारी कामिन जनि त रोदन करू, जनि त लगावहु माया-मोह
मोरा त डोरी लागे सुरुज गोसाइयाँ, परिछन जइबों जगरनाथ।।४१।।
हाँ रे, बाघ-भाल बने बहुत बिआयल, दहिने सुरुजवा के जोंत
उहवाँ चोर-ठोर जब लगिहें, उनके मरले नाहीं दोस।।४२।।सखि.
हाँ रे, बाघ-भाल हमके कुछुओ ना करिहें, जो घंटे बसे भगवान
उहवाँ चोर-ठोर मोहि का करिहें, कि दीहें भोजनी बनाय।।४३।।सखि हरि.
कायापुरवा मथनी, मायापुरवा हो, जो न होइहें संग-साथ
जीवन जन्म सुफल भल रहिहें, तबहिं जइबों जगरनाथ।।४५।।सखि हरि.
हाँ रे, नगरी बिजयपुर सीहपुर गउँवा, तहवाँ बएजनाथ ठांव
नंग नारी, ऊपर नाहिं बसतर, तहाँ सामी धाई लीहो ध्यान।।४६।।
हाँ रे, जाहि हम लौटब, तोरे मोरे दरसन, नाहीं त दइब हरि लीन
केकर नारी, केकर तुहूँ तिबही, काहे मनवा हीछत मोर।।४७।।सखि.
हाँ रे, झारीखंड जहुँ जइब मोरे सामी, अगते में हरिहें गेआन,
तोहि से लीहें जे ठोढे के डोरा, ठोकर मारत तोहार।।४८।।सखि हरि रामा।
बइसाख ही मासे लगन दुइ-चारी, खैर-सुपारी लेले हाथ
आउ आउ बभना, बइठु मोरे अँगना, कि सोची देहु निदवाँ सुरी।।४९।।सखि.
हाँ रे, सूकर शनीचर आउरो दिन मंगर, विअफे के दिनवा सुदीन
विअफे के दिनवाँ पयंत राजा करिह, कि कुशले परिछिह जगरनाथ।।५0।।
हाँ रे, मरहू रे वभना, बभिनिया होखे रांडे, जरि रि जाहू पोथिया-पुरान
एक त सामी मोरा चित्त के उदासल, दोसरे बाभन दिन ठाने।।५१।।
हाँ रे, काहे रे धनिया बभन गरिअवलू, जरिहें पोथिया-पुरान
ठाकुरजी के हम कीरिपा मनइबों, कुसले परिछवों जगरन्नाथ।।५२।।
कायापुरवा मथनी, मायापुरवा बान्हों, जो होइहें संग-साथ
जीवन जनम सुफल भल रहिहें, तबहीं जइबों जगरनाथ।।५३।।
हाँ रे, जेठहिं मासे जाहुँ जइब मोरे सामी, जनि दीह हमरा के दोस
कि परग-परग गोरख फोड़ा पड़िहें, कि नित दिन गनब कइ दोस।।५४।।सखि.
हाँ रे, लछु त टका के हम छत्र बेसहिबों, पाँव त पनहिया लेबों जोर,
ठाकुरजी के हम किरपा मनब, कुसले परिछबों जगरनाथ।।५५।।सखि.
हाँ रे, जाहुँ तुहुँ जइब सामी देस-परदेसवा,
हमहूँ जोहने लगि गाँव रास्ता के होइब
सामी पावें के पनहिया घामे, शीतल जुड़ि छाँह।।५६।।
हाँ रे, पानवा अइसन धनि पातर रहतू, फूलवा अइसन सुकवार,
मरिची अइसन धनि पातर रहतू, फूलवा अइसन सुकवार,
मरिची अइसन धनि गोठा रहितू, कि क लेतों में झोरिया लगाय।।५४।।सखि.
कायापुरवा मथनी, मायापुरवा बान्हों, जो न होइहें संग-साथ
जीवन जनम सुफल भल रहिहें, तबहिं जइबों जगरनाथ।।५५।।