भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दग़िस्तानी लोरी - 4 / रसूल हम्ज़ातव / मदनलाल मधु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्वर्ण - सुनहरे धागों के गोले जैसी — बिटिया है मेरी ।
रजत - रुपहले चमचम करते फ़ीते - सी — बिटिया है मेरी ।
ऊँचे पर्वत पर जो चमके चन्दा - सी — बिटिया है मेरी ।
पर्वत पर जो उछले कूदे, उस बकरी - सी — बिटिया है मेरी ।

कायर - बुजदिल दूर हटो तुम
नहीं मिलेगी कायर को — बिटिया मेरी ।
झेंपू फाटक पर घूमो
नहीं मिलेगी झेंपू को — बिटिया मेरी ।

वासन्ती, चटकीले सुन्दर फूलों-सी — बिटिया है मेरी ।
वासन्ती, सुन्दर फूलों की माला-सी — बिटिया है मेरी ।
हरित तृणों के कोमल क़ालीनों जैसी — बिटिया है मेरी ।


रूसी भाषा से अनुवाद : मदनलाल मधु