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दमित आशा / चेन्जेराई होव / राजेश चन्द्र
Kavita Kosh से
मेरी आत्मा रिसती रहती है,
मैं परहेज़ ही करता हूँ आशा रखने से।
यह नहीं फलती मुझको,
पूरी तरह से रिस जाएगी
और बच्चे चुन लेंगे
जो कुछ भी मिलेगा बचा-खुचा इसमें।
चाहे जितनी भी हों शीर्ण ज़िन्दादिल आवाज़ें
वे उपहास उड़ाएँगी ही मेरा
क्योंकि हार चुका हूँ मैं
और डोलता फिरता हूँ उस चमड़ीदार भूत की तरह
आशाएँ दब गई हैं,
चुक गई हैं जिसकी एक-एक करके।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र