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दरद दिसावर भाग-4 / भागीरथसिंह भाग्य

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सूका सूका खेतडा पण नैणा मै बाढ ।
घर मँ कोनी बाजरी ऊपर सूँ दो साढ ॥

जद सूँ पाकी बाजरी काचर मोठ समेत ।
दिन भर नापै चाव सूँ पटवारी जी खेत ॥

फिर फिर आवै बादळी घिर घिर आवै मेह ।
सर सर करती पून मँ थर थर कांपै देह ॥

होगी सोळा साल री बेटी करै बणाव ।
कद निपजैली टीबडी कद मांडूला ब्याव ॥

टूटी फूटी झूँपडी बरसै गरजै गाज ।
इण चौमासै रामजी दोराँ रहसी लाज ॥

टाबर टीकर मोकळाँ करजै री भरमार ।
राम रूखाळी राखजै थाँ सरणै घरबार ॥

निरधनियाँ नै धन मिल्यो रोजणख्याँ नै राग ।
राम बता कद जागसी परदेसी रा भाग ॥

उगतो पिणघट ऊपराँ सुणतो मिठी बात ।
गळी गुवाडी घूमतो चान्दो सारी रात ॥

ना पिणघट ना बावडी ना कोयल ना छाँव ।
तो भी चोखो सहर सूँ म्हारो आधो गांव ॥

सांझ ढळ्याँ नित जांवता देखै सारो गांव ।
पिरमा थारी लाडली पटवारी रै ठांव ॥

पैली उठती गौरडी पाछै उठती भोर ।
झांझर कै ही नीरती सगळा डांगर ढोर ॥

छैल सहर सूँ बावडै खरचै धोबा धोब ।
पडै गांव मै रात दिन पटवारी सा रोब ॥

जद मन तरस्यो गांव नै जद जद हुयो अधीर ।
दूहा रै मिस मांडदी परदेसी री पीर ॥

प्रीत आपरी अचपळी घणी करै कुचमाद ।
सुपना मै सामी रवै जाग्या आवै याद ॥

पाती लिख रियो गांव नै अपरंच ओ समचार ।
दुख पावुँ परदेस मँ जीवूँ हूँ मन मार ॥


राग रंग नी आवडै कींकर उपजै तान ।
घर मै कोनी बाजरी अर टूट्योडी छान ॥

घर दे घर रूजगार दे घर घर री दे साख ।
ना देवै तो सांवरा जीवण पाछो राख ॥

बिन हरियाळी रूंखडा घरघूल्या सा ठांव ।
’राही’ दीखै दूर सूँ थारो आधो गांव ॥

लेग्या तो हा गांव सूँ कंचन देही राज ।
पाछी ल्याया सहर सूँ खांसी कब्जी खाज ॥

गाय चराती छोरडयाँ जोबन सूँ अणजाण ।
देख ओपरा जा लूकै कर जांटी री आण ।।

जोध जुवानी बेलड्याँ मिलसी करयाँ बणाव ।
आखडजै मत पावणा पगडंड्या रै गांव ॥

के तडपासी बादळी के कोयल री कूक ।
पैली ही सूँ काळजो हुयो पड्यो दो टूक ॥

अजब पीर परदेस री म मर जीवै जीव ।
घर मै तरसै गोरडी परदेसाँ मै पीव ।।

ना आंचळ ना घूंघटो ना हीवडै मै लाज ।
घिरसत पाळै गोरडी रोटी पोवै राज ॥

घाटै रो घर दे दिये दुख दीजै अणचींत ।
मतना दीजे सांवरा परदेसी री प्रीत ॥

धान महाजन रै घराँ ढोर बिक्या बे दाम ।
करज पुराणो बाप रो कीयाँ चुकै राम ॥

बेटो तो परदेस मै घर बूढा मा बाप ।
दोनो पीढी दो जघाँ दुख भोगै चुपचाप ॥

ठाला बिन रूजगार कै ताना देता लोग ।
भरी न अब तक गांव सूँ मनस्या बळण जोग ॥

जद जासी परदेस तूँ हुसी जद बरबाद ।
दरद दिसावर ई कडया रोज करैलो याद ॥

कितरा ही दुहा लिखूँ अकथ रहीज्या भाव ।
परदेसी रो दरद तो है गूंगै रो भाव ॥