भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दरारें / हरकीरत हकीर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज की रात
बड़ी अजीब है
बारिश की बूंदें
काँपती रहीं
यादों की पत्तियों पर
दबे क़दमों से
तुम्हारे कहे लफ्ज़
आँखों की कोरों के
दरवाजे खड़खड़ाते रहे …
और मैं देर रात तक
दोनों हाथों से
आईने पर पड़ी
दरारें छुपाती रही ….