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दरारें / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
आज की रात
बड़ी अजीब है
बारिश की बूंदें
काँपती रहीं
यादों की पत्तियों पर
दबे क़दमों से
तुम्हारे कहे लफ्ज़
आँखों की कोरों के
दरवाजे खड़खड़ाते रहे …
और मैं देर रात तक
दोनों हाथों से
आईने पर पड़ी
दरारें छुपाती रही ….