भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दरिया से तालाब हुआ हूँ / सतपाल 'ख़याल'
Kavita Kosh से
दरिया से तालाब हुआ हूँ
अब मैं बहना भूल गया हूँ.
तूफ़ाँ से कुछ दूर खड़ा हूँ
साहिल पर कुछ देर बचा हूँ
नज़्में ग़ज़लें सपने लेकर
बिकने मैं बाज़ार चला हूँ
हाथों से जो दी थी गाँठें
दाँतों से वो खोल रहा हूँ
यह कह - कह कर याद किया है
अब मैं तुझको भूल गया हूँ
याद ‘ख़याल’ आया वो बचपन
दूर जिसे मैं छोड़ आया हूँ.