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दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-इमाँ होना / बृज नारायण चकबस्त
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दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-इमाँ होना
आदमियत यही है और यही इन्साँ होआ
नौ-गिरफ़्तार-ए-बला तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ क्या जानें
कोई नाशाद सिखा दे इन्हें नालाँ होना
रह के दुनिया में यूँ तर्क-ए-हवस की कोशिश
जिस तरह् अपने ही साये से गुरेज़ाँ होना
ज़िन्दगी क्या है अनासिर् में ज़हूर्-ए-तर्तीब्
मौत क्य है इन्हीं इज्ज़ा का परेशाँ होना
दिल असीरी में भी आज़ाद है आज़ादों का
वल्वलों के लिये मुम्किन नहीं ज़िन्दा होना
गुल को पामाल न कर लाल-ओ-गौहर के मालिक
है इसे तुराह-ए-दस्तार-ए-ग़रीबाँ होना
है मेरा ज़ब्त-ए-जुनूँ जोश-ए-जुनूँ से बढ़कर
नंग है मेरे लिये चाक गरेबाँ होना