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दर्द अपना है न ख़ुशी अपनी / सूरज राय 'सूरज'
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दर्द अपना है न ख़ुशी अपनी
साँस ख़ुद ही से अजनबी अपनी॥
रौनकें कह रहीं ज़माने की
बेच दे हमको सादगी अपनी॥
आज का दौर तो समन्दर है
जाओ ले जाओ तश्नगी अपनी॥
मौत का एक वक़्त है निश्चित
बस मिला लीजिये घड़ी अपनी॥
आप किरदार से बहुत हल्के
और वज्ऩी है शायरी अपनी॥
दुश्मनी की नज़र न लग जाए
माँस-नाखून-सी दोस्ती अपनी॥
फूंक से टीस जाग उठती है
चीख़ गाती है बांसुरी अपनी॥
तूने पकड़ी थी कलाई वरना
खोल लेता मैं हथकड़ी अपनी॥
आईना ही कभी नहीं देखा
आँख ख़ुद से नहीं मिली अपनी॥
मौत से ये भी कहा शाह हूँ मैं
पर नहीं एक भी चली अपनी॥
दिल दिया बिजलियाँ मैं और "सूरज"
रोज़ जमती है कम्पनी अपनी॥